Sunday, February 6, 2011

निशब्द



पहाड़ों में
नहीं रहता जंगल
या कोई नदी।
घुप्प अंधेरे में बसता है यहां
मॊन,
नि:शब्द।
तुम जिसे सुनते हो
स्पर्श,
हवा और हवा के बीच।
तुम जिसे देखते हो
सॊंदर्य,
दृश्य और दृश्य के बीच।
वह कहीं गहरा है
अपने मन सा.
अपनी ही खोज में
किसी और पहाड़ पर.

(गोपाल सिंह चौहान) 

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